मुस्लिम पक्ष ने वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया
सूट योग्यता को लेकर फैसला आ जाए, फिर अपनी बात रखेंगे : हिंदू पक्ष
-सुरेश गांधी
वाराणसी : ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में अदालत सुनवाई कर सकती है या नहीं, को लेकर जिला जज की अदालत में गुरुवार को सुनवाई हुई। लगातार दो घंटे की सुनवाई और दलीलों के बीच बहस को जारी रखते हुए जज एके विश्वेश ने अब इस मामले में 30 मई, सोमवार को अगली सुनवाई की तिथि दी है। आदेश के मुताबिक मुस्लिम पक्ष नियति तारीख पर अपनी बची हुई दलील को रख सकता है। इसके बाद हिन्दू पक्ष अपनी दलीलें रखेगा। बहस के दौरान मुस्लिम पक्ष ने 1991 के वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि ये केस मेंटेनेबल नहीं है। हिंदू पक्ष ने अब तक दावा किया है कि ये केस सुने जाने के लायक है और उसका सर्वे रिपोर्ट पर गौर किए जाने का दौर है.
तय समय पर दोपहर ढाई बजे के बाद जिरह शुरु हुई तो दोनों पक्षों ने तर्क और दस्तावेजों को सामने रखा। इस दौरान घंटे भर से अधिक समय तक मुस्लिम पक्ष की ओर से जिरह की गई। पूरे समय मुस्लिम पक्ष के वकील अभयनाथ यादव व और मुमताज ने वर्शिप एक्ट के हवाले से तमाम तरह ही दलीलें पेश की हैं। मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि श्रृंगार गौरी केस सुने जाने के लायक ही नहीं है. इसको साबित करने के लिए मुस्लिम पक्ष ने कई तर्क दिए और समयाभाव को देखते हुए आगे अपनी बात रखे जाने की अपील की। सुनवाई चार बजे खत्म हो गई। खास यह है कि मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ऊंची आवाज में जब दलीलें रखने लगे तो हिंदू पक्षकार के वकील हरिशंकर जैन ने कहा कि मेरा स्वास्थ ठीक नहीं है. कृपया तेज आवाज में न बोलें. इस पर आवाज मद्धम करते हुए मुस्लिम पक्ष ने कहा कि नियम 7/11 के तहत हिन्दू पक्ष के सूट को खारिज किया जाना चाहिए. इसे सुनने की भी जरूरत नहीं है. मस्जिद परिसर से बरामद पत्थर को शिवलिंग बताकर लोगों के बीच अफवाह फैलाई जा रही है कि वो शिवलिंग है. अफवाह इसलिए फैलाई जा रही है ताकि हिंदू लोगों की भावनाओं को इस मामले के साथ जोड़ा जा सके.
मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि ऐतिहासिक तथ्यों और 1991 के उपासना स्थल कानून के तहत भी हिन्दू पक्ष की ये याचिका सुनवाई योग्य नही है. थोड़ी देर तक जिला कोर्ट में हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन और मुस्लिम पक्ष के वकील अभय नाथ यादव के बीच बहस जारी रही. मुस्लिम पक्ष के वकील अभय यादव ने दलील दी कि परिसर में शिवलिंग का नामोनिशान नहीं है. वहां तो वाजूखाने के हौज में फव्वारा है. शिवलिंग मिलने की अफवाह फैलाई गई है. मुस्लिम पक्ष की दलीलों को सुनने के बाद हरिशंकर जैन ने कहा कि अयोध्या में राममंदिर के मुकदमे की सुनवाई के समय भी कहा गया कि वहां तो कोई मंदिर नहीं मस्जिद है, लेकिन सच्चाई सारी दुनिया के सामने है. हिंदू पक्षकारों की ओर से विष्णु जैन ने कहा कि सबसे पहले सूट योग्यता को लेकर फैसला आ जाये उसके बाद वो शिवलिंग होने, उसे नुकसान पहुंचाने, स्वरूप बदलने की कोशिश करने जैसे मुद्दों पर अपनी बात को रखेंगे.
मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि उनकी दलील अभी बाकी हैं, लिहाजा सोमवार को तय हुई अगली सुनवाई के दौरान भी शुरुआत मुस्लिम पक्षकार के वकील की दलीलों से ही होगी. इसके बाद हिंदू पक्षकार अपनी बात रखते हुए मुस्लिम पक्षकार की दललों की काट रखेंगे. यानी हिंदू पक्षकारों को अपनी अर्जी में लिखे गए तथ्यों से ये साबित करना होगा कि उनकी याचिका सुनवाई के सर्वथा योग्य है. सोमवार को दोपहर 2 बजे सुनवाई आगे जारी रहेगी। तय समय पर दोपहर ढाई बजे के बाद जिरह शुरु हुई तो दोनों पक्षों ने तर्क और दस्तावेजों को सामने रखा। इस दौरान घंटे भर से अधिक समय तक मुस्लिम पक्ष की ओर से जिरह की गई। पूरे समय मुस्लिम पक्ष के वकील अभयनाथ यादव ने वर्शिप एक्ट के हवाले से तमाम तरह ही दलीलें पेश की हैं। इस दौरान हिंदू पक्ष के वकील भी अपनी बात कहते रहे. इसके बाद जिला जज ने 30 मई की तारीख अगली सुनवाई के लिए तय कर दी. कोर्ट में दोनों पक्षों से 36 लोग मौजूद रहे.
शिवलिंग के साथ की गई छेड़छाड़
ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी सर्वे के मुकदमे की सुनवाई से पहले न्यायालय पहुंचे वादी पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि शिवलिंग मुस्लिम पक्ष के कब्जे में था। उन्होंने उसके साथ छेड़छाड़ की है। इस बाबत उन्होंने जिला न्यायाधीश की कोर्ट को सूचित किया।
तीन अन्य आवेदनों पर भी होना है निर्णय
जिला जज की अदालत में तीन और आवेदनों पर भी निर्णय किया जाना है। इसमें वादी पक्ष की ओर से वजूखाने में मिले शिवलिंग के नीचे की जगह को तोड़कर कमीशन की कार्यवाही, जिला शासकीय अधिवक्ता के वजूखाने के तालाब में मछलियों को संरक्षित किए जाने की मांग और काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी के भोग, राग, शृंगार और पूजा पाठ के अधिकार के लिए पक्षकार बनने के आवेदन पर निर्णय होगा।
इस स्थिति में उपासना स्थल कानून 1991 नहीं होगा लागू
उपासना स्थल कानून 1991 के सेक्शन 4 के सब- सेक्शन 3 में अपवादों का जिक्र है. सब- सेक्शन 3 में बताया गया है कि किन मामलों में सब-सेक्शन 1 और 2 लागू नहीं होगा. इसका पहला पॉइंट कहता है कि अगर कोई उपासना स्थल जो एंशियंट मॉन्यूमेंट्स एंड आर्केलॉजिकल साइट्स एंड रिमेन्स ऐक्ट 1958 का हिस्सा है तो उसपर ये कानून लागू नहीं होगा. मतलब अगर उस स्थान पर आर्केलॉजिकली कोई ऐसा तथ्य मिलता है जो ये साबित करे कि वो 100 साल या उससे पुराना है तो वो प्लेसेज ऑफ वर्शिप ए के दायरे में नहीं आएगा. यानी अगर मस्जिद में मिला शिवलिंग या दूसरी मूर्तियां 100 साल से ज्यादा पुरानी हुईं तो उनपर उपासना स्थल कानून 1991 लागू नहीं होगा. इसी अपवाद के नियम को हिंदू पक्ष की तरफ से आधार बनाने की तैयारी की जा रही है.
इस कानून में हैं कुल सात धाराएं
90 के दशक में पारित किए गए इस कानून की तीसरी धारा में किसी धार्मिक स्थल के वर्तमान स्वरूप में कोई ढांचागत बदलाव न करने की बात कही गई है. कानून में सभी धार्मिक स्थलों को उसी रूप में संरक्षित करने को कहा गया है जिस रूप में वे 15 अगस्त 1947 को यानी देश की आजादी के दिनमौजूद थे. चाहे उनका पुराना इतिहास कुछ भी क्यों न रहा हो. कानून के अनुसार अगर साबित भी हो जाए कि मौजूदा धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था तब भी उसके वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता. और यही वजह है कि मुस्लिम पक्ष बार-बार इस कानून का हवाला दे रहे हैं. लेकिन जानकारों की मानें तो इस कानून में भी कुछ अपवाद नियम हैं. जो ज्ञानवापी मामले में आधार बन सकते हैं.
क्या है पूजा स्थल अधिनियम 1991
पूजा स्थल अधिनियम, 1991, पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाने और 15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता के समय के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का प्रयास करता है। अधिनियम की धारा 4 (1) में कहा गया हैः “धार्मिक 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान पूजा स्थल का स्वरूप वैसा ही बना रहेगा जैसा उस दिन था।