सर्वे की वीडियो और फोटोग्राफ जमा, सात दिनों तक आपत्ति का मौका, कोर्ट ने सर्वे रिपोर्ट पर दोनों पक्षों से जवाब मांगा
-सुरेश गांधी
वाराणसी : ज्ञानवापी में क्या होगा? पूजा होगी या नमाज? मस्जिद मानी जाएगी या मंदिर? क्या ज्ञानवापी का धार्मिक रूप बदलेगा? ज्ञानवापी में मिले दावे वाले शिवलिंग का क्या होगा? वजूखाने का क्या होगा? सर्वे रिपोर्ट का क्या होगा? इन सभी सवालों के जवाब के लिए कोर्ट ने आगे की सुनवाई के लिए 26 मई की तारीख निश्चित की है। अदालत ने कहा है कि सबसे पहले आर्डर रुल 7/11 पर सुनवाई होगी। इसके अलावा अदालत ने निर्देश दिया है कि अगले सात दिन में एडवोकेट कमिश्नर की कार्यवाही पर दोनों पक्ष अपनी आपत्तियां दाखिल कर सकते हैं। इसी दिन सुनवाई के बाद वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी की कॉपी भी दी जाएगी।
बता दें, सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग पर पूजा करने की याचिका दी गई है। इसके साथ ही मुस्लिम पक्ष की ओर से पोषणीयता को लेकर भी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि यह मुकदमा सुनने लायक है या नहीं। दरअसल, ऑर्डर 7 रूल नंबर 11 के अनुसार कोर्ट किसी केस में तथ्यों की मेरिट पर विचार करने के पूर्व पहले यह तय करती है कि क्या दायर याचिका सुनवाई करने लायक है अथवा नहीं। इसके लिए मुस्लिम पक्ष वर्शिप एक्ट 1991 का भी हवाला दे रहा है कि अब मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का कोई दावा नहीं बनता है। जबकि वादी पक्ष चाहता है कि अभी तक हुई एडवोकेट कमिश्नर की कार्यवाही पर सुनवाई पहले हो, ताकि इसके आगे कोई निर्णय हो सके। इससे पहले सोमवार को जिला जज ए.के. विश्वेश की अदालत ने करीब 45 मिनट तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मुस्लिम पक्ष ने कहा-मामले को खारिज किया जाए
एडवोकेट विष्णु जैन, सुभाषनंदन चतुर्वेदी, नित्यानंद राय ने कहा कि यहां विशेष उपासना स्थल कानून लागू नहीं होता है। डीजीसी सिविल महेंद्र प्रसाद पांडेय ने भी कहा कि 1991 के पहले और बाद में भी पूजा हो रही है। ऐसे में विशेष उपासना स्थल कानून लागू नहीं होता है। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता मोहम्मद तौहीद खान ने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने अदालत में याचिका दायर करके कहा है कि यह मुकदमा चलाने लायक नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाए। कोर्ट में दलील देते हुए मुस्लिम पक्ष ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में कोई शिवलिंग नहीं है, बल्कि वहां पर सिर्फ फव्वारा ही है।
शिवलिंग की नियमित पूजा के लिए याचिका
इसके अलावा ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग के नियमित पूजन-अर्चन के लिये अदालत में काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉक्टर कुलपति तिवारी ने सोमवार को याचिका दायर की है। तिवारी ने कहा, ‘‘मैं बाबा विश्वनाथ की तरफ से आया हूं। मैंने आज एक याचिका दाखिल कर अदालत से बाबा के नियमित दर्शन पूजन की मांग की है। मुझे बाबा के राग, भोग, सेवा और भक्तों को दर्शन की अनुमति दी जाय। वहीं, जिला शासकीय अधिवक्ता महेंद्र पांडे की ओर से परिसर में स्थित मानव निर्मित तालाब के पानी में से मछलियों को हटाने और वजूखाने की पाइप लाइन को स्थानांतरित करने की मांग को लेकर एक याचिका गत मंगलवार को दाखिल की गई थी, जिस पर अदालत द्वारा सुनवाई होनी है।
ज्ञानवापी का सर्वे 16 मई को हुआ था पूरा
गौरतलब है कि वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने राखी सिंह तथा अन्य की याचिका पर ज्ञानवापी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था। सर्वेक्षण का यह काम पिछली 16 मई को पूरा हुआ था, जिसके बाद इसकी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी गई थी। हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजू खाने के अंदर कथित शिवलिंग मिलने का दावा किया था। इसी बीच उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर याचिका की सुनवाई की गई। मुस्लिम पक्ष की दलील थी कि ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण कराया जाना उपासना स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन है। हालांकि, हिंदू पक्ष का दावा है कि सर्वेक्षण के दौरान परिसर के अंदर हिंदू धार्मिक चिह्न तथा अन्य चीजें मिली हैं।
नहीं रुकेगी सुनवाई
मुस्लिम पक्ष के वकील हुजेफा अहमदी ने बार बार द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की बात सुप्रीम कोर्ट के जज के सामने की लेकिन क्यों सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट किसी धार्मिक स्थल का नेचर और कैरेक्टर चेंज करने से रोकता था, धार्मिक जगह की जांच करने से नहीं? ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर त्रिशूल, डमरू, कमल क्या साबित करते हैं? क्या आपको पता है की ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में इस बात के सबूत मिले हैं कि वहां एक जमाने में भगवान शिव का मंदिर था. इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि बाबा विश्वनाथ का साढ़े चार सौ साल पुराना मंदिर वहीं पर था. ये बातें उस रिपोर्ट में सामने आई जो वाराणसी की अदालत में आज पेश की गई।
हिन्दू पक्ष ने मांगा सर्वे रिपोर्ट की वीडियोग्राफी
अदालत जहां एक गांव की जमीन के मामले में दशक बीत जाते हैं. अदालत जहां अयोध्या का फैसला आने में दशकों लग गए. सामाजिक तनाव के मुद्दे के समाधान में वक्त लगता है तो उसी वक्त का फायदा राजनीति उठाती है. तनाव बढ़ता है, समरसता कम होती है, ऐसे में देश का माहौल हमेशा सुधरा रहे, इसलिए जरूरी है कि ज्ञानवापी विवाद में अदालत को हर पक्ष को सुनने के बाद फैसला देने में देर ना हो जाए कहीं! कमीशन रिपोर्ट के साथ ही इसके वीडियो और फोटो का अवलोकन किए बगैर आपत्ति करना और न करना दोनों ही स्थिति में न्याय संगत न होगा। इसलिए वादीगण को कमीशन रिपोर्ट के साथ दाखिल वीडियो और फोटो की नकल देने का आदेश दिया जाएं।